असम की चाय जनजातियों पर 1.38 करोड़ से रिसर्च करेगा जामिया, डिजिटल और स्किल ट्रेनिंग पर रहेगा फोकस


नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia) को बड़ी शैक्षणिक उपलब्धि हासिल हुई है. विश्वविद्यालय के शैक्षणिक अध्ययन विभाग (Department of Educational Studies – DES)को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) से 1.38 करोड़ रुपये का प्रमुख रिसर्च प्रोजेक्ट मिला है. यह प्रोजेक्ट Empowering Tea Tribes of Assam through Digital and Non-Digital Skill Development Programmes: A Longitudinal Study विषय पर आधारित है.

क्या है रिसर्च का मकसद?

इस रिसर्च प्रोजेक्ट का मकसद असम के चाय बागानों में कार्यरत चाय जनजातियों (Tea Tribes) के सामाजिक और आर्थिक विकास को डिजिटल शिक्षा, स्किल ट्रेनिंग और आजीविका के वैकल्पिक अवसरों के माध्यम से मापना और सशक्त बनाना है. यह प्रोजेक्ट न सिर्फ अकैडमिक स्टडी है, बल्कि यह सीधे तौर पर उपेक्षित और वंचित समुदाय की जिंदगी को बेहतर बनाने की कोशिश भी है.

प्रोजेक्ट से होगा यह फायदा

इस रिसर्च का मुख्य उद्देश्य असम की चाय जनजातियों को डिजिटल और गैर-डिजिटल स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स के जरिए सशक्त बनाना है. शोध का दायरा व्यापक होगा और इसमें डिजिटल साक्षरता की पहुंच, इसके प्रभाव जैसे कई सामाजिक पहलुओं को मापा जाएगा. इसके अलावा व्यावसायिक प्रशिक्षण से लेकर आजीविका के अवसर तक मुहैया कराए जाएंगे. वहीं, महिलाओं और युवाओं के लिए रोजगार की संभावनाएं भी तलाशी जाएंगी. 

शोध के प्रमुख पहलू

इस स्टडी में qualitative और quantitative डेटा दोनों का इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे रिजल्ट व्यावहारिक और नीतिगत दोनों लेवल पर दमदार हो. इसके अलावा चाय जनजातियों के बीच सीधा संवाद, फील्ड विजिट्स, इंटरव्यू, और फोकस ग्रुप डिस्कशन के जरिए उनकी वास्तविक जरूरतों को समझा जाएगा. साथ ही, जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी, जो राज्य और केंद्र सरकार के नीति निर्माण में मददगार साबित हो सकती है.

जामिया मैनेजमेंट ने दी यह जानकारी

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति प्रोफेसर मजहर आसिफ ने कहा कि यह प्रोजेक्ट सिर्फ चाय जनजातियों को सशक्त बनाने की दिशा में प्रयास नहीं है, बल्कि यह पूर्वोत्तर भारत के प्रति जामिया की प्रतिबद्धता को दिखाता है. हम चाहते हैं कि अकैडमिक स्टडी से समाज को फायदा हो. वहीं, रजिस्ट्रार प्रोफेसर महताब आलम रिजवी ने कहा कि यह रिसर्च एक अनदेखे और उपेक्षित समुदाय की जरूरतों को केंद्र में रखता है. 

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