यह कहानी सिर्फ एक बच्ची की नहीं, बल्कि हमारी संवेदनहीनता की है. एक मासूम बच्ची, जिसकी उम्र खेल-कूद में बीतनी चाहिए, वह सड़क पर गुलाब बेच रही थी. उसका सपना बस इतना था कि कोई उसका एक फूल खरीद ले, ताकि घर में दो वक्त का खाना मिल सके.
दृश्य देखकर लोगों का पिघला दिल
लेकिन किस्मत ने उसके साथ फिर से क्रूर मजाक किया. उसने एक ऑटो का पीछा किया ताकि ड्राइवर को गुलाब दे सके. पर ऑटो रोकने के बजाय ड्राइवर ने गुस्से में उसे थप्पड़ मार दिया. वह बच्ची वहीं सड़क किनारे रो पड़ी. यह दृश्य देखकर किसी का भी दिल पिघल सकता है.
तभी शिखर नाम का एक राइडर बाइक रोककर उसके पास गया. शिखर ने बताया कि बच्ची की आंखों में दर्द साफ नजर आ रहा था. मैंने उसे दिलासा देने की कोशिश की और कुछ पैसे देने चाहे, लेकिन उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया. यह उसका अहंकार नहीं था, बल्कि उसकी गहरी पीड़ा थी. उसने कहा, “पैसे नहीं चाहिए… बस लोग हमें इंसान समझें.”
सोचिए, क्या हमने इंसानियत को खो दिया?
शिखर ने आगे बताया, ”उसकी ये बात मेरे दिल को चीर गई. सोचिए, एक बच्ची को यह कहना पड़ रहा है कि हमें इंसान समझो. हम किस दिशा में जा रहे हैं? आज यह सवाल हम सब से है- क्या हमने अपनी इंसानियत खो दी है? क्या हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि अपने आसपास के दर्द को देखना भी भूल गए?”
शिखर ने सोशल मीडिया पर लोगों से अपील की, ”दोस्तों, अगर हम सच में बदलाव चाहते हैं तो हमें खुद से शुरुआत करनी होगी. हर बच्चा हमारी जिम्मेदारी है. अगर हम पैसे नहीं दे सकते तो कम से कम सम्मान तो दे सकते हैं. एक मुस्कान, एक अच्छे शब्द से भी किसी का दिन बदल सकता है.”
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